‘तुम्हारा बदल जाना’ हमेशा तकलीफ नहीं होता

बदल! ये कुदरती खूबी हमे जन्म से मिली है। बदलता हर कोई है, आसपास देखो तो कुछ भी पहले जैसा नही हैं। ना कोई चीज, ना कोई इंसान ना हम खुद। फिर क्यों हमे किसी दूसरे के बदलने से तकलीफ होती है?
इस बदलाव की वजह से न जाने कितने रिश्ते ऐसे टूट जाते है जैसे पेड़ से सुखा पत्ता। सूखे पत्ते को भी अपने सूखेपन का एहसास तब तक महसूस नही होता जब तक वो पेड़ को या फिर पेड़ उसे नही छोड़ता। फिर क्यों हम इंसान किसी दूसरे को उसके बदलाव के कारण छोड़ देते है?
बदलाव जरूरी है! जैसे की मैंने कहा, जमाने के साथ हर किसी को बदलने का पूरा हक है। वो आप है जो जमाने के थोड़े पीछे चल रहे हो इसीलिए आपको दूसरे का आपसे आगे जाना यानी कि बदलना बर्दाश्त नही होता। मैं ये नही चाहता के आप जमाने के भी आगे की सोचे, लेकिन जो चल रहा है उसे तो अपना लीजिए। इससे होगा ये के आपको दूसरे का बदलना तकलीफ नहीं लगेगा।

बदलाव की आदत डालने में थोड़ा वक्त तो लगता है। जिसे बदलाव के कारण हानि हुई है वो हर वक्त खुद को बदलने से डरता है। वो हर उस गुंजाइश को मिटा देता है जो उसे बदलने में मजबूर करे, चाहे वो उसका कोई करीबी क्यों ना हो। मगर जमाने की फितरत है जनाब, बदला हुआ जमाना आपके लिए नही ठहरता। आपके बदलने या ना बदलने से जमाने को कोई फर्क नही पड़ेगा… फर्क आपको पड़ेगा, और वो क्या ये आप अच्छी तरह से जानते हो।
‘तुम बदल चुके हो’ ये कहने की नौबत कभी आयेगी ही नही जब आप भी उसके ही जितना बदल चुके होगे। जिस रिश्ते में बदलने का हक हर किसी को बराबर का होता है वो कभी पीछे नहीं छूटता… बदलाव को अपना लेने से शायद किसी का हाथ नही छूटता…
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