आजकल पहला चेहरा मायने नहीं रखता
बात कुछ ऐसी है कि आजकल बात समझ में ही नहीं आती। हम कहना कुछ और चाहते है, और हमारा चेहरा कहता कुछ और है और मतलब कुछ और ही निकलता है। इसी के दोहरान हमारा कहना बेमतलब का हो जाता है! कैसे?
हमारा चेहरा… जिस में अनगिन चेहरे छिपे है। कुछ चेहरे दिख जाते है, कुछ दिखाए जाते है तो कुछ पहचाने जाते है बस फर्क सिर्फ इतना है के आजकल ये चेहरे कुछ मायने ही नहीं रखते क्योंकि ये चेहरे हमे ही नही दिखते, क्यों? ये सवाल आप खुदी से क्यूं नहीं पूछते! क्यूं आजकल रिश्तें कमजोर कांच की तरह टूटते हैं? कभी सोचा आहे? नही! सोचने के लिए हमारे पास इतना वक्त ही नहीं होता।
किसी जमाने में लोग खत लिखा करते थे, खत का इंतजार करते थे कुछ खत मिल जाते थे तो कुछ रास्ते में ही खो जाते थे। कुछ देर से आते थे लेकिन देरी कितनी भी हो, उनमे शिद्दत से लिखे हुए जज्बात कही नही जाते थे। लेकिन अब जिंदगियां छोटी हो गई है, जमाने के साथ साथ इंसान बदल गए है, दूसरों के जज्बात हम पर हावी हो रहे है। और खुद के जज्बात किसी एक इमोजी के पीछे कैद हो रहे है।
पता नही उस इमोजी का असल में चेहरा क्या है, पता नही वो इमोजी असल में कहना क्या चाहता है। बस हंसता हुआ दिखा तो तो खुश और रोता हुआ दिखा तो गम ज्यादा कुछ नही बस इतना कहना चाहता हूं के इन इमोजीस के पीछे भी एक चेहरा है जो आसानी से कभी दिखता नही, जो खुद कभी सामने आता आता नही।
बस कभी कभी उसे पहचानने की कोशिश कीजिए, उसे जानने की कोशिश कीजिये क्या पता इससे आपके कैद जज्बातों से भरी छोटी सी जिंदगी में आपको एक जीता जागता जिंदा इमोजी मिल जाये…