कश्ती

मन चला कहीं दूर अलग जहाँ में
आसमाँ के करीब एक बहती लहर पे
ख्वाबों की कश्ती उस पर सवार
राह देके वो खुश – हाल
चले जब वो साहिल की खोज में
कितने तूफ़ान आये बादलों को चीरते
मगर कश्ती ना रुकी
बहती गयी उसी रफ़्तार से
जो थामी थी करने अपने
इरादे इस दुनिया के पार…

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आवाज़

ऐब होंगे बेशक कई सारे
खामियाँ भी दिखेंगी कई
ये रूह है तजुर्बे की
कसम से, ये बाज़ी है दिल की
सफर का किस्सा है होंठों पर
मुसाफिर बने है हम और तुम
ये सितारों से भरा आसमां ही सही
गुफ्तगू कर रही है गुज़ारिश भी
अब मुद्दा है बातों का कैसे होंगी वो बयां
ये दिल जो मसरूफ है खुद
शायद किसीने दिल से दी आवाज़…

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चाय

तू कली सही पत्तों की
एक फूल बन गयी हो
खुशबू और महक को
साथ लेके घूमती हो
तिखी जुबाँ हो कभी,
कभी मिठास बाटती हो
तेरे दूध जैसे रंग के बहकावे में आना
मानो शक्कर का पानी में घुलना हो
अब इससे ज्यादा क्या कहूँ
बस अब तुम चाय जैसी हो गयी हो…

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