कारवां

कुछ पल का ही है कारवां
आज है थी कल धुआ
कोहरा भी है यहां पर फैला
सच यहीं है कहीं छुपा हुआ..
आज है मौका, कल
मिले ना मिले सोहबत
एक गलती करो और
ज़िंदगी भर की तोहमत
वेहशत से जुड़ा ज़ेहन है
आंखों पे बंधती पट्टी है
सब धुंधला है फिलहाल
ये उलझन तो बेबस है..
नहीं समझेगा कुछ भी
अभी नहीं है, होश किसी बात का
सिर्फ और सिर्फ एहमियत दिख रही
अपने अलावा कुछ और नहीं दिख रहा..
ये लफ्ज़ लगे ज़हर उगलते हुए
किसी का किरदार अल्फाजों का रूप लेते हुए
हक़ीक़त है ये किसी की रोजाना ज़िंदगी
ये ज़िंदगी भी आधी पूरी और उलझी है…

@UgtWorld

कोरा कागज़

कोरा कागज़ भर गया
ये लफ्जो को नशा चढ़ गया
पूछते है कौनसी बात रह गई
मैंने कहा अभी तो शुरू भी नहीं किया..
क्या क्या लिखूं अब इसमें
ये सोच भी रहा हूं
और लिख भी रहा हूं
शायद पूरा ज़ेहन ही उसमे उतर गया..
मुस्कान भी दिख रही है
चेहरा भी खिल रहा है
ये कौनसा नया शक्स मुझको
लिखने पर मजबूर कर गया..
ये वही है जो पहले से था
अंदाज़ और लेहजा जरासा बदल गया
केह रहा मुझसे तारीफ ऐसी कैसी
ये मेरा तरीका है, मै केह गया…

@UgtWorld

हिंदी कविताएँ

कश्मकश

कश्मकश मेरे एहसास है
साज़-ए-उल्फत मेरे खास है
माजी में डूबा हुआ तसव्वुर है शायद
कुछ लिखे हुए खत मेरे पास है..
सहर की खिलती धूप
ओस का बदन पे गिरना
ये शब का छुप जाना
आह का नाराज़ होना
किस्से की यही शुरवात है..
आरज़ू बेबस होकर चिल्लाती हुई
राह को बेहिसाब आवाज़ देती हुई
किस कदर मंज़िल को आहट हुई
पहला खत पोहचने की आस है..
मायने बदलते होंगे वक्त से
फैसले बदल दिए होंगे दूरी से
याद जो है वो याद भी नहीं
फसाना है या मुख्तसर लम्हा पास है…

@UgtWorld