ज़ेहन

सवाल आ रहा है
ज़ेहन पर अब तो
बर्ताव गंदा है या गलती है वो
लिहाज रखना चाहिए
लफ्जो पर शायद
तेज़ किनार लेके निकलते है सब वो..
दुखा देते है बड़े आसानी से
ना तो ध्यान रहता है
ना खयाल कोई जो
समझेगा कौन बात ये
अब समझानी भी नहीं है किसीको..
तराशे किसी के झूठ से
क्यों अपनी अच्छाई से
खुद से राबता है पाकीज़ा
दिल दुखाने दू, क्यों किसी को…

@UgtWorld


हिंदी कविताएँ

तो बेहतर होता

दिलो दिमाग सलामत रखता
हरकतों को देख ज़रा गौर करता
फ़ुरसत मिलती उस वक्त वहां पर तो बेहतर होता..
हर जगह अच्छाई बिछाए जा रहा
खुद की एहमियत को भूलता हुआ
रिहा ऐसे रिश्तों को अगर कर देता तो बेहतर होता..
डोर उस मकाम की खो चुका था
जज़्बातों के दायरों में फसा हुआ
हर मायूसी को भी कमज़ोर करता तो बेहतर होता..
फ़िक्र के साथ ही गुजारा किया
फनकार है जिस्म ये जेहेन से चला गया
कश्ती ला पाता मंजर की दरबदर तो बेहतर होता…

@UgtWorld