मजबूर
@UgtWorld
हैरत है अब ज़ोरो पे ज़िन्दगी भी परेशान है
कल का नहीं है कुछ ठिकाना
मगर वक़्त बिताना तो आज भी है
सोच सोच के ज़हन है खामोश
कितना लाये सब, कितना करे गम कम
है तो इंसान हम भी यहाँ
क्या नहीं सेहता ये नन्हा दिल बेचारा
बीत रहे है लमहे बड़ी मुश्किलों से
बिताए हुए हसीन लम्हों को याद करके
अब दूसरा है भी क्या हमारे पास
मजबूर अपने अपने घरों में बैठे…
उलझन या सुलझन
@UgtWorld
इन लम्हों में कैद घुटन सी होने लगी है
बेकरारी सर चढ़ बैठी है
राह ताके चुप चाप खड़ी है
ये हवा मुँह मोड बैठी है
यार अब कहा जाए
किस तरफ अपना रुख मोड़ ले
मगज़ बेबस हो गया है
दिल को और क्या तकलीफ दे
बड़ा कमाल का मौसम हो चला है
बस खुद ब खुद उलझ रहा है
सुलझ जाए तो बेहतर होगा
मुझे तो अब हालात के लिए बुरा लग रहा है…
उल्फत
@UgtWorld
होंठो पर आई है ये बात
ना जाने जाएगी किसके पास
कही राज न खुल जाये मेरे
वरना खाने पड़ेंगे फटके यार
कुछ करना होगा जुगाड़
नहीं तो होगा किस्सा ब
सारे खुल जो गए मेरे राज
बड़े ताने सुनने पड़ेंगे अगली बार
सोच रहा था किस बारे में, भूल गया
ये बात बतानी किसको थी, भूल गया
क्या होगा कौन जाने आगे का
तू ऐसा भी लिखता है या फिर
लिखना ही भूल गया…