वक्त जब सच ढूंढ़ने का आता है!

सच जो छुपा है नकली सच में…

वक्त जब सच ढूंढ़ने का आता है! हम अपनी ऑंखें क्यों बंद कर लेते है. बात ये है की ये हम जान बुझ के करते है. सच हम जानते है मगर उसे मानने से मना कर देते है. वजह सिर्फ ये है की बात हमारे अहंकार पे आ जाती है ना!

उस के बावजूद अगर हमे पता चले के यहीं सच हमे आगे जाकर मदत करेगा, कुछ जरुरी चीजें सँभालने में. है जो पल अभी वो जीकर आने वाले पल में आगे जाने के लिए. मगर नहीं! हम उस सच को अपनी जिंदगी में लाये कैसे और करे भी क्या उसे लाकर? अंत में उसका परिणाम हमारे काम में, घर में, प्यार या फिर और बाकी चीजों में दिख जायेगा.

मेरी एक करीबी दोस्त ने मुझे कहाँ था “कभी भी किसी के सामने खुद के बारे में पूरा मत बताओ. हमेशा ७० प्रतिशत ही बताना फिर वो हमारा प्यार ही क्यों ना हो या कोई और. बाकी जो ३० प्रतिशत बचता है वो अपने पास ही रखना हमेशा.” दुनिया के लिए उन्हें जितना जानना जरुरी है उतना ही बताना. जरुरत से ज्यादा कहोगे तो यही बात अपने ही खिलाफ इस्तेमाल कर सकते है.

@UgtWorld