सोचे भी तो कैसे?
कैसे कहे खुद को कुछ बातें!
सोचे भी तो क्या? कहे भी तो क्या खुद को? खास करके उन चीजों के मामले में जो हमारे बस के बाहर है. जिन चीजों को सिर्फ वक़्त सुलझा सकता है या तो फिर भगवान. हम थक जाते है सोच विचार में. खुद को कोसने लगते है. फिर एक वक़्त आता है जहा पर हम उन बातों का ज़िक्र करना छोड़ देते है.
वैसे ये जायज़ भी है. और चारा भी क्या बचता है हमारे पास. मगर वो बात कुछ देर के लिए ही चली जाती है. इस पर कोई संदेह नहीं. हमें थोड़ी सी राहत इस सोच से ले लेनी चाहिए. आज के दौर में वक़्त पानी जैसा बह जाता है और उस बहाव को रोकना हमारे हाथों में नहीं होता. इस बहाव का आईना होता है हमारी सोच, जिसका बहाव रुकते रुकता नहीं.
कोशिश कर सकते है उस बहाव को काबू में लाने की मगर बंद करना लगभग नामुमकिन है. अगर सोचना ही है तो ज़रूरतों के बारे में सोचो. कोई अपने अच्छाई का फायदा ना ले इसके बारे में सोचो. हमारी ज़िन्दगी किस तरह से चैन-औ-सुकून से कटेगी उस के बारे में सोचो. जो अच्छा है उसे सोचने में कोई बुराई नहीं होगी..