कब तक कोई दूसरा सहन कर सकता है…
कब तक ये बात होती रहेगी?
ताज्जुब की बात है, मतलब लोग किस हद तक अपनी गलती न मानने की गलती कर सकते है. कुछ लगे ना लगे मगर कम से कम उन्हें ये तो लगना चाहिए के अपनी गलती का पछतावा खुद तक तो रखे. क्योंकि एक हद के बाद हर कोई समझना छोड़ देता है. और वो जायज़ भी है. कब तक कोई दूसरा सहन कर सकता है.
वो बात वो हालात यहाँ तक भी रुकते नहीं है. वो अपने बर्ताव को कुछ इस तरह से पहनते है जैसे कोई मिजाज हो. जिन लोगो ने तुम्हारे लिए इतना कुछ कर है उनके लिए तुम कुछ भी न करो. मगर कम से कम एहसान फरामोश तो ना बनो. बहोत मुश्किल से नाम बनता है ज़िन्दगी में. रिश्तें जोड़ने में सालों लग जाते है. उसे एक पल में तोडना बिलकुल भी सही नहीं होता. पर ये समझाएगा कौन, और कब तक समझा पाएगा.
एक वक्त ऐसे आता है समझना और समझाना दोनों छूट जाते है. दिल कब तक सहन कर पाएगा, पता नहीं आगे क्या होगा? समझाने वाले रहे ना रहे. हम अपनी बातों में मगरूर रहेंगे और क्या! जिंदगी दाव पे लगी है, दिखता नहीं इनको. इन्हे बस दिखता है तमाशा करना. दूसरों को इस हद तक परेशान करना मानो वो लोग अपनी जान हथेली पर रख ले. ना की डर से बल्की उस कड़वाहट से जो उनके ज़ेहन में दबी है. जो नफरत दिल से ख़त्म ही नहीं होती, वो बात जो उनको समझाने आती नहीं. सिर्फ गुस्सा उगलना है उसके अलावा कुछ भी नहीं.