संभालो खुदको, समझाओ खुदको!
क्यूँ चाहिए दिखावा जब सच पता हो खुदको…
क्यूँ चाहिए दिखावा जब सच पता हो खुदको. क्यों जाना है फिर वहाँ समझाने उस शक़्स को जो समझाने के लायक न हो. क्या इतना ज़रूरी हो सकता है खुदके दिल से. संभालो खुदको, समझाओ खुदको सच. जो समझता हो उसे बताना नहीं पड़ता.
ज़ेहन में चाहे कितने भी खयाल आए इस बात को लेकर मगर कभी अपना ज़मीर ना गिराना. क्योंकि जिसके लिए आप वो कर दोगे वो सामने से कहेगा के हमने तो नहीं कहा था करने को ऐसा कुछ. और फिर बुरा लग जाता है हमे इस बात का, कर के भी बदले में ऐसी बातें.
अपने जज्बात किसीके ग़ुलाम नहीं होते. वो अपने आप में खुदको सुरक्षित महसूस करना चाहते है. वही बेहतर होता है हर बार की तरह जो आपको रोके रखे. एक बार ज़ुबां से निकला हुआ लफ्ज़ और उसमे दिखे गए दिल के हालात आपके खिलाफ बड़े आसानी से इस्तेमाल कर सकते है. जो दिमागी संतुलन बिगाड़ने के लिए काफी होंगे. खयाल रखना आदत कर देनी चाहिए मगर खुदकी.