ख्वाब से हक़ीक़त तक
हक़ीक़त जब ख्वाब बन चलेगी
कहानी हो चुकी शुरू मेरी, ले चली है मुझको दूर अब. इस दुनिया से अलग है जो. रेहेन सेहेन वहा का अलग है थोड़ा. कायदे कानून की ज़रूरत नहीं जहाँ पर. सब चले अपने मुताबिक, गलत सही की बात ही नहीं. एक तरफ एहसास और दूसरी तरफ साफ दिल. ख्वाब ही लग रहा होगा…
हां! ये सब होता है अपने-अपने हिसाब से. क्योंकि वो ख्वाब ही है जहाँ हम कुछ भी बन सकते है. मनचाही दुनिया बना देते है, मनचाहा किरदार निभा लेते है. बिना किसी हिचकिचाहट के. ना सवाल कोई करने के लिए कोई सामने खड़ा है, और ना तो कोई पूछने के लिए मौजूद है. शरीफ वही है जिन्हे तुमने लाया है उस ख्वाब में.
आ गए होंगे अब तक आप ख्वाबों में. कोई बात नहीं हो जायेगा एक दिन ऐसा भी के नहीं लगेगा कुछ भी अजीब हक़ीक़त जब ख्वाब बन चलेगी तब. फिर कम होगी सोच की तकलीफ. न रहेगा किसी का दबाव. अब लगेगा ये तो उम्मीद के बाहर और यकीन से परे है. मगर इस ज़िंदगी में इस दौर में कुछ भी हो सकता है. इस बात पर तो यक़ीन हो उतना काफी है. फिर सोचो वही जो चाहते हो.