हमेशा भावुक नहीं होना, थोड़ा व्यावहारिक रखो…
हमारी भावनाओं से व्यावहारिक रहना चाहिए. वास्तविक दुनिया में किसीको मौका ना दो जो तुम्हे उस दबाव में लाए. फिर चाहे वो कोई भी हो नजदीकी या अंजान शख्स. सबसे पहले खुद के साथ प्यार से बर्ताव करे. खुदकी भावनाओं का आदर करना सीखो, और खुद का भी.
ज्यादा न सोचना अगर कोई तुम्हारी भावनाएँ जान भी ले समझ भी ले तो. वैसे भी लोग तुम्हारे बारे में तुलना करेंगे ही और तुम अभी अभी उन्हें मिले हो ऐसे जताएँगे. ऐसे सोचो जैसे तुम्हे किसी के बारे में चिंता नहीं. या फिर खुद पर ध्यान दो. आत्मविश्वास और हौसला इस वक़्त जरुरी है. उस के बाद आपको फर्क नज़र आएगा आहिस्ता ही सही. दिवार बनती जाएंगी आपके ज़हन के करीब.
वो दीवारें तुम्हारी भावनाओं का रक्षण करेंगी और जो जरुरी है वहीं संभाले रखेंगी. उन्हें नहीं रखेंगी जो जरुरी नहीं. आज कल ऐसे अँटीव्हायरस ज़िंदगी में चाहिए. जहाँ भावनाओं से खेला नहीं जा सकता और तो और सही गलत का फर्क समझे.
जो हमारे साथ बुरा भला करते है उन्हें इस बारे में कोई फर्क नहीं पड़ता. किसीको फर्क नहीं पड़ता और पड़े क्यों? हम ही हक देते है दूसरों को अपने ताकद और कमजोरी का किस्सा सुनाकर. जहाँ हम खुद से ज्यादा किसी और के बारे सोचने लगते है उसी वक़्त हम अपने स्वाभिमान की थोड़ी सीमा गिरा देते है. हमे हमारी अच्छाई की एक सीमा रख लेनी चाहिए. हर कोई हमारी अच्छाई के लायक नहीं होता.
ठीक है अब क्या! भावनाओं में बहकर हम गलतियां कर बैठते है. किसी भी तरह का माहौल हो हम उस में से निकल सकते है. सिर्फ अपने भावनाओं, अपने आत्मविश्वास को थोडासा वक़्त दो. फिर से अपने काम की, अपने उद्देश्य की तैयारी करो. इस भावनाओं के खेल से खुद को आजाद कर दो.