कितना सोचोगे उस बारे में तुम?

कितना एहम है ये!

कितना सोचोगे उस बारे में तुम?

बैठे बैठे जब मै खो जाता हूँ, मेरे जेहन में बस एक ही आवाज़ गूंजती है. और वो आवाज़ मुझसे न जाने कितना कुछ कह जाती है. हर हाल अपने दिल का मेरे पास वो बयां कर जाती है. कैसे रोकू मै इस आवाज़ को कोई भी तरकीब काम नहीं आ रही मुझपर. कैसे समझाऊ इस दिल के जज़्बात को? कैसे काबू ला पाउँगा मैं इन सब चीज़ों पर.

शायद किसीको कुछ ना कहना ज्यादा बेहतर हो. समझ के क्या मतलब है उनका. बस करो अब, ये इतना कह दिए चुप कराएँगे. कुछ ज्यादा ही तुम सोचने लगे हो. कम कर दो, राहत दे दो खुदको. कितना सोचोगे उस बारे में तुम. आज़ाद कर दो हर वो खयाल जो उससे जुड़ा हो. क्यों पंछी को कैद करने पर तुले हो. मत करो कुछ ऐसा जो तुम्हे भी तकलीफ दे और उसे भी. आसान नहीं है भुला पाना इन सब चीज़ों को, मगर कोई और रास्ता भी तो नहीं बचा है पास मेरे.

रिहा कर दो उसे अपने कैदी खयाल के पिंजरों से. और फिर शायद तुम्हे राहत मिल सकेगी. कोशिश करने में हर्ज़ ही क्या है. अगर मक़ाम पाना है तो कोशिश करनी जायज़ है. और उस पल के बाद कम से कम तुम चैन की साँस तो ले पाओगे. कहीं दूसरी जगह दिल लगा लोगे. मुमकिन हुआ तो ये भी हो जायेगा. सब्र पर सब है. अगर जरासा भी हो तो बड़ा आसान हो जायेगा. ये कोशिश कर के देख सको तो देखो एक दफा. शायद ज़िन्दगी एक और मौका तुम्हारे आगे लाकर रख दे.

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