कहने को इश्क है मेरे लफ्ज़
बीतने को वक्त है मेरे लफ्ज़
कैसे ये ना पूछ उनको मेरे दोस्त
बड़े नरम दिल है मेरे लफ्ज़…

जहन का अंत अब
और दिल का शोर शुरू
अजब लड़ाई है ये
जंग ख़तम मगर जंग शुरू…

मसले मिलने लगे
कुछ इस कदर गले
मानो अरसों से उनकी
बाहें हमारे लिए ही थी…

ये तोहमत ही सही
ये आतिष ही सही
वो लफ्ज़ है मेरे कुछ भी हो
वो बेपरवाह बिल्कुल नहीं…

हमको नहीं चाहिए
कोई रिश्तेदार कोई करीबी
हमे अकेले रहने की आदत,
शायद थी और रहेगी भी…


Related Posts