
सवाल उठता है
ये सवालात भी
मेरे जहन-ओ-दिमाग
पर छाए है…

ज़ेहन भी खामोश था
कहे क्या अब
आसूं सब जो कह गया था…

कहीं चोट ना लगे बीच राह में
मरहम लगाने कोई नहीं आता
नमक की दुआ दी जाती है
भरे बाज़ार में…

उसने कुछ सुनाने बुलाया है
पता नहीं किस लफ्ज़ पर फिदा हो
किस शेर को ग़ज़ल से मिलवाना है…

जिल्लत करे हमारी परवाह
कल जो होना है होकर रहेगा
कल के बारे में फिर क्यों सोचना…