कहता हूं बड़ी बातें खुदसे
जहन भी चुप है यहां
लफ्ज़ पड़ रहे है भारी मुझपर
लिख देता है शायरी बेवजह…

मैंने तय किया है
बेहतर होना है मुझे
मगर ये खयाल भी मेरा
कीमती नहीं लगता मुझे..

फर्क है मेरे ज़हन में या सोच में
किसी के जैसे बिल्कुल नहीं है ना थी !
मान लेते है कुछ लोग इस बात को
बाकी मेरे लिए किसिके मायने नहीं…

लफ़्जों को सहारा देते है
अल्फ़ाज़ भी कमाल है यार
सिर्फ रास्ते अलग चुनते है
मुकद्दर तो एक ही होता है यार…

लहजों में अदब है
मुस्कानों में महक है
तड़पे दिल जब भी कभी
उस का अपना ही एक वहम है..


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