
मुशायरा बदनाम शेरों बिना
उनको पड़ती है जरूरत जिनकी
वो लफ्ज़ क्या है एहसास बिना..

प्यास बुझ रही है
जिंदगी शायद अब
पहले जैसी नहीं रही..

जुबान का सफर
जरा सा ध्यान हटा
और हम गिरे कहीं और

मेरी ताकद मेरे लफ्ज़ है
वैसे दोनों तो एक ही है कहने को
पर खयाल मेरे कुछ ज्यादा ही पास है…

जहन में खयाल मेरे
चुप्पी सी बैठ जाती है
जुबान पर मेरे.