बेफिकर बेशक होंगे वो
नादान ना समजना उनको
कदर है जिन्हें लफ्जों की मेरे
वो तो अपना समझते है मुझको…

है जो फितरत-ए-कारवां

गुजर रहा है करीब से

डर लग रहा है अब

कही खो ना जाऊं फिरसे…

है फिकर अगर जेहेन की

सोच को थोड़ा आहिस्ता रखो

सोच को काबू पाना आसान कहा है

तुम लाख चाहो अपने

अंदाजे से मुझे समझना

बात वही तक समझेगी

जितना मैं समझने दू तुम्हें

बराबरी करना भी मत कभी

या मुमकिन ही नही के

मेरे जैसे हो पाओ


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