कुछ लोगों को दूर ही रखो,
अपने अच्छाई के वास्ते,
आप अच्छे हो इसका ये मतलब नही,
तुम संभाले फिरो सब के हौसले…
इन वादियों की गहराई मे एक सफर है,
खामोशी के एहसान की गूंजती लहर है,
बे-आवाज जुबान की बेबसी का आगाज़ है,
कुछ इसी तरह मेरे ज़ेहन का हाल है…
ये कोहरा है धुआं,
ये सांस है धुआं,
जेहन की तपती आग,
उसकी राख बनी है धुआं…
मुठ्ठी में कैद है
लमहे फिलहाल वरना,
दो वक्त का खाना
है कोई चाहता है….
मुस्कुराहट है होठों पर! किसी बात का खौफ नहीं,
बीता जो कल, आने वाला कल,
पता नही, जान-ना भी नहीं,
इस पल मे जिंदा हूं काफी है
बाकी किसी बात की फिकर नही…