आदत ए जवाब किस को कहे,

तबियत ही हों खराब तो उम्मीद क्या करें,

ये हाल, ये तव्वसूर भी खाली है,

इस पल का इलाज कैसे करें…

एक पल है संग,

अगला पिसलता हुआ लम्हा,

दोस्त, प्यार लफ्जों में है फिलहाल,

मिलना मुकद्दर कहा हुआ…

लिखने को लफ्ज नहीं,

सोचने को खयाल नहीं,

अजब तमाशा है शुरू

गूंज तो है मगर खामोशी से तेज नही….

चलना है यहां इस जहां के संग हमे,

मंजिल है सुनी पड़ी, रास्ता है सुना पड़ा,

मुख्तसर है सारी खूबीयां, सारे लमहे अधूरे,

किताब के पन्ने कोरे रह गए यहां…

खत्म भी नही होते ये ख़्वाब,

ना किस्से हक़ीक़त के यहाँ पर,

बस फैला है कारवां कोहरे का,

हर एक मोड़, हर एक जिस्म पर…


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