कुछ आदतें नही छूटती,
रह जाती है तलब बनकर,
हर पल में बेकरार होना है खुद को,
बेबसी में अकेले रहकर…
मैं फिर भी होश में रहूं,
ये गुस्सा मगर !
होश खो देता है
हर बार की तरह…
ना रात का अंधेरा,
ना दिन का उजाला,
ख़ामोशी की रौशनी,
लाए ये नया नजारा…
दिखावा है सब
यहां कुछ भी सच नहीं,
ये बात जहन में
पक्का मकान कर गई….