दोस्त ही था अपना
कहा गैर था वो
तकलीफ़ इतनी थी सिर्फ
बोलता कम था वो…

बिगड़ी बातें है यहाँ
सुलझाये कौन उन्हें
ना जाने कितने मसले है
सुलझये कौन इन्हें…

सर्द है मौसम
गर्मी की नमी है
मौसम दिल-ए-जेहन का अजब
और क्या दिलचस्पी है…

एक एहसान भारी पड़ जाता है
पता नही क्या से क्या हो जाता है
लफ़्ज़ों में फ़र्क, बर्ताव में बदलाव
ना जाने आगे क्या हो जाता है…

कहर है वक्त का
या असर परेशानी का
नफ़रत की लौ ना
बढ़े कभी
कोशिश है यही हर दफा…


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