रोज कुछ लिखूं ये ज़हन में है
रोज कुछ सूझे ये सफ़र पर है
रोक लेना कभी मुझे कोई
ये बात भी कीसी के याद में है…

महफिल उजाड़ दी है
लफ्ज शायद होशियार बने है
कत्ल पर उतर आए जज्बात
जो शमशेर बने घूम रहे है…

मजबूर हूं या नादान हूं
सच्चाई से शायद अनजान हूं
हर बात को जानकर भी
होठ दबाए खामोश हूं…

कैसे है लोग अजब तरह के
बदलते हैं बातें उनके हिसाब से,
गहरे है घाव पहले ही यहां
उन्ही पर नमक लगा देते है…

चुप सी है जिंदगी
चुप से राज है
रंग की वो मिसाल
हर रंग खुशहाल है….


Related Posts