ये तोहमत ही सही
ये आतिष ही सही
वो लफ्ज़ है मेरे कुछ भी हो
वो बेपरवाह बिल्कुल नहीं.
हमको नहीं चाहिए
कोई रिश्तेदार कोई करीबी
हमे अकेले रहने की आदत,
शायद थी और रहेगी भी..
हर एक बात पर
सवाल उठता है
ये सवालात भी
मेरे जहन-ओ-दिमाग
पर छाए है..
राहें देख कर चला करो
कहीं चोट ना लगे बीच राह में
मरहम लगाने कोई नहीं आता
नमक की दुआ दी जाती है
भरे बाज़ार में…
जिल्लतों की परवाह क्यों करे हम
जिल्लत करे हमारी परवाह
कल जो होना है होकर रहेगा
कल के बारे में फिर क्यों सोचना…

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