लत भी है
नशा भी है
मंजिल की भूक भी है
प्यास भी,
तू एक इंसान है
या कोई जुनून भी है…
नासमझ रहो, फायदे में रहोगे
समजदार हूं, इसलिए बेकार हूं
दी थी जो छूट दिल, दोस्ती, मोहब्बत में
उसी का गुन्हेगार हूं.
उसी का गुन्हेगार हूं…
बेफिकर बेशक होंगे वो
नादान ना समजना उनको
कदर है जिन्हें लफ़्ज़ों की मेरे
वो तो अपना समझते है मुझको…
हर उम्मीद की बात
किसी राह पर ठहर जाती है,
एक मोड़ शिद्दत से लिया और
मंजिल से गुफ्तगू हो ही जाती है…
सफल होगी राहें मेरी
हर मोड़ झुका दूंगा
कह तो दू सभी बातें
मैं बात राज़ की
नही करूंगा…

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