बेहाल दोपहर की गर्मी

सर्द सी सांसों पे है भारी

एक घूंट राहत की ठंडक मिल जाए

तो पलट जाए कहानी…

डर है अजब सा

एक क्यूं का जवाब नहीं

सिर्फ छुटकारा चाहिए

हर चीज़ ज़रूरी नहीं…

राह ताके मुसाफिर

अपनी मंज़िल को याद करके

क्या पता कौनसी लगन है

इस मंज़िल को लेके…

है वो आरजू

मशहूर होने की

हर कीसिका मशहूर होना

एक जैसा नहीं होता….

पा लेना है अब

मंज़िल का रास्ता

मेरी नजर बदल चुकी है

बदल दिए है राबते भी…

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