टुकड़ों में लिखते हो

शायरी पूरी भी करो कभी

मतला रह जाता है

मक्ता तो पूरा करो कभी….

भर भी दो अगर

बोझ से दिल को

अगर दिल ही नाराज़ हो

तो क्या फर्क है उसको…

है फितरत मेरी सोच के

मायने बदल देता हूं मै,

इंसान बदलने जाता हूं और

खुदको ही बदल देता हूं मैं…

शुरुवात हो गई है
अब आतंक मचाना बाकी है

इन लफ्जो कि दुनिया में नाम है

इसे ऊंचा उठाना बाकी है..

डर नहीं है,
ये गलतफहमी है

मै हासिल नहीं कर सकता

ये सोच की कमजोरी है….

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