मेरे अंदर एक बेचैनी है
एक दुनिया है, कहकशाँ है!
जिसका हर सिरा अपने ही
आप में जुड़ा है…
कही रुक गयी है गाड़ी
ज़िन्दगी की अब तो
एहसास के दाम भी बढ़ गए
संभाले नहीं जाते अब तो…
मेरा मानना है के
मैं खुदगर्ज बन जाऊ अब से
इन अच्छाई के पर्दो ने
मुझे ढक दिया है परेशानी में…
रात हो चली है
ये दिन भी ढल रहे है
वक़्त बीतता यहाँ मेरा
सारे फैसले रुके हुए हैं…
अक्सर ख़ामोशी बोल देती है
अनकहे लफ्ज़ सारे
निगाहों के बयान होने
का वक़्त जाया ना जाए…