मैं लिख रहा हूँ अपने आप में
मसरूफ होकर यहाँ
ये अजब कश्मकश चल रही है
खयाल और जहन के दरम्यान…

सिर्फ लिख रहा हूँ
मतलब, मायने पता नहीं
है किस बात की लफ़्ज़ियत
ये मुझको भी पता नहीं…

मेरे लड़खड़ाते लफ्ज़
परेशानी बन गए है मेरे लिए,
उसको कहना कुछ होता है
लफ्ज़ कह कुछ और जाते है…

कह लेंगे जो चाहे वो
कौन मुझको टोक सके
अपनों ने बेड़ी थमा थी
अब इनको कैसे रोके…

कितना लिख सकता हूँ
मुझे खुद अंदाज़ा नहीं
मेरे लफ्ज़ हमेशा खामोश
कभी रहते नहीं…

Related Posts