महफिल उजाड़ दी है
लफ्ज शायद होशियार बने है
कत्ल पर उतर आए जज्बात
जो शमशेर बने घूम रहे है…
इस बात पर गौर करो के
बात बेहद अच्छी हो
मिला भी कुछ मतलब उसमे
कोई और उसका मतलब ना लो…
तुझे आजाद किया
मैंने दिल के कमरों से
लौट आई तो खुशी वरना
इस बात का अब गम भी नही है…
महफूज रखा है मकसद इस कदर
के किसी को पता ना चल पाए
ये हाल ही है ऐसा हमारा के
किसी को बता भी ना पाए…
दूर हो जाता है वक्त
मेरे पास सिर्फ लम्हा है बचा हुआ,
खो भी हूँ मैं अगर लम्हा
नया लम्हा है करीब बैठा हुआ…

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