अज्ञान से मन में बसाया हुआ “रावण”
आजकल की युवा पीढ़ी त्योहार मनाने के मामले में आगे आने लगी है. उस में संस्कृति का मान रख कर कितने और सिर्फ दिखावे के लिए कितने करते है ये तो सब जानते है. मानो या ना मानो हमारे अंतर्मन में रावण के कई गुण है. मगर वो कौनसा एक गुण हम पर भारी है, क्या उस इंसान को ये पता होगा? शायद हा! शायद नहीं भी. असलियत में क्या?
हमारे अहंकार को कहाँ सन्मान मिल सकता है, इस बात का खयाल किस मन ने किया है आज तक. बहोत से लोग अब ये सोच रहे होंगे, ये ऐसा कैसा सवाल आ गिरा है! बुद्धि को चालना देते समय किस सोच की डोर हम अपने करीब रखते है. ये बात भी आधे से ज्यादा लोगो को पता नहीं होगी. शायद उनके किए धरे की हर वो चीज में मौजूद रहने वाला मोह! उनसे नियंत्रित नहीं होता. आजकल की पीढ़ी तो शारीरिक नजदीकी के बिना रह ही नहीं पाती, ऐसे क्यों कहते है भला?
इच्छा के मार्ग को अंत नहीं होता ऐसे कहते है. सच ही तो है! मत्सर याने के द्वेष के चलते कई लोग किस किस हद तक जाते है, ये तो सबको पता ही है. क्रोध काबू में नहीं रख पाते. जायज है गुस्से में अगर होश ही न हो तो करेंगे भी क्या? करके भी क्या फायदा! इस बात की फ़िक्र कोई करता है क्या? कोई नहीं करता. असल में इस बात की किसीको परवाह ही नहीं होती. गर्व तो रहता ही है ना! पाव के तलवे से लेकर हाथों के नाख़ून तक. लोभ ही नियंत्रण में नहीं रहता एक वक़्त के बाद, तो क्या कहे! रहने दो ऐसा ही.
रावण के मामले में कुछ बातें ऊपर बताई गई है. पर उसी रावण का अस्तित्व जब हम जलाने जाते है. उसे जलाने के पीछे हम खुदकी कितनी बुरी आदतें और चीजें मन से जला देते है, ऐसा सवाल कितने लोगो के ज़ेहन में आता है? पता नहीं! मगर हम कई सारी अच्छी चीजें उसी आग में जला देते है. इस बात का दुःख कितने लोगों को होता है? उस बात की तरफ कोई ध्यान नहीं देता. हम तो बस उस रावण को जलाने के उत्साह में मगन होते है. अज्ञान से हो या फिर जानते हुए हो! हमेशा बुरी चीजे ही ख़त्म कर सकते है, ये सच में होता है क्या!
आदर्श मानकर चलते हुए उस में कितने गुण असामान्य है. किसी को इस में दिलचस्पी क्यों नहीं? हमारे कला और गुणों को वारिस देने की चाह आजकल क्यों नहीं होती? हमेशा तुलना करने वाले मन को जरा सा अलग करने की जिद क्यों नहीं? होश में रहते वक़्त भी उसे अनचाही चीजों का लोभ क्यूँ हो? उस जलती आग में हमारे भीतर का द्वेष, लालसा, हवस, तिरस्कार की भावना इन में से ही कई चीजें क्यों न जलाई जाए! असल में, बहोत अच्छा होने की आदत को भी उसी आग में त्याग देना चाहिए.