गुजरती रही जो मेरे भीतर
इस जख्म ए सबब का
असर कम कैसे हो
बीता हुआ कल जब
ताज़ा कलम जैसे सामने हो…
है धुन सांसों कि आवाज़ों में
ये कैसा गीत है जो
गाया जाता है दर्द मे…
इंतजार करवाते हुए
उसने बड़ा सताया है
अब इंतजार से भीमुझे नफरत का संदेसा आया है….
नई बातों को दिल में
दबाए रखे हुए हो कुछ तो
सुखनवर कह दो
ये क्या दर्द बांट रहे हो…
आप कह तो दो
हम यूहीं चले जाएंगे
कुछ कहे बिना ही
आपको अलविदा कह जाएंगे…
Nice Lines
Thank you for your feedback…