हर तरफ बिखरे बादल है छाए
ना जाने कब गम की बरसात हो
भीग ही जाएंगे हम इसमें
किसके पास इस उम्मीद की छांव हो…
मैं मानता हूं जख्म
करना नहीं आया
पर तूने तो तौफे में
इतने जख्म दिए है
हमें संभलना ही नहीं आया..
मजबूर था मैं
या नाराज था शायद
दिल्लगी में चोट खाया हुआ
इंसान था शायद…
जान लो एक बात
करनी है दिल की तहकीकात
मंजिल पर तुम नाम लिख गए
सफर हमारा अधूरा छोड़ गए…
कत्ल का इल्जाम लगा है तुमपर अब
तकलीफ की सजा पाओगे
ये जो सादगी का दावा किया था
उसे अब कैसे दिखा पाओगे…

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