कैसे है लोग अजब तरह के
बदलते हैं बातें उनके हिसाब से,
गहरे है घाव पहले ही यहां
उन्ही पर नमक लगा देते है…
तुझे आजाद किया
मैंने दिल के कमरों से
लौट आई तो खुशी वरना
इस बात का अब गम भी नही है…
मदतगार समझते थे तुझको
इश्क़ के मरीज थे ना हम
इलाज करना तो दूर रहा
मर्ज पे मर्ज बढ़ाते गए तुम…
बेबस है निगाहें मेरी
अश्क आंखों में थमे हुए
पाक है हर एक कतरा बूंद का
मेरे दिल की हर सांस लिए हुए..
मुझे यकीनन पता है
तुम इश्क़ करती हो मुझसे
हमे नकारने से पहले
पूछ लेती जरा अपने दिल से.

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