मेरी कलम से इश्क़ हुआ था,
तुझे याद है!
तू छूट गई ज़िन्दगी के मोड़ पर
कभी सोचा था? किसीने…

अब जब भी आ जाए
जहन में खयाल मेरे
चुप्पी सी बैठ जाती है
जुबान पर मेरे…

क्या उलझन मिट पाएगी

मेरी बातें हल हो पाएगी

ना भी हो तो क्या

ऐसा कहने से क्या बात ख़त्म हो जाएगी..

याद आयेगा तो याद रखना

नहीं आया भूल जाना

तो फर्क पड़े तो खुशहाली पूछना

नहीं पड़े तो अलविदा कह देना..

है जो फितरत-ए-कारवा

गुजर रहा है करीब से

डर लग रहा है अब

कहीं खो ना जाऊं फिरसे…

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