विंडो सीट

सुकून के पनाह में लिपटी हुई विंडो सीट

विंडो सीट

दिन की भाग दौड़ में सुबह से लेकर रात तक हम सुकून ढूंढते रह हैं। लेकिन क्या वह सुकून हमे मिलता है? ये सवाल जरूरी नहीं क्योंकि शायद हम छोटी छोटी चीजों में वो एक सुकून या किसी राहत भरे लम्हें की तलाश में रहते हैं। इस भाग दौड़ में इक छोटे से लेकिन अहम सुकून से आप सभी वाकिफ होंगे, जो कि विंडो सीट!

हां ‘विंडो सीट’, एक ऐसी जगह जिस जगह पर आखरी मंजिल तक हमारा राज होता है, लेकिन यहां राज करने के लिए काफी कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है। करोड़ों की तादाद में लोग इस जगह पर राज करने के लिए अपना खून पसीना एक कर देते है लेकिन इस विंडो सीट पर किसी एक का ही नाम लिखा होता है। कभी कबार तो हमारे पहले ही कोई उस विंडो सीट पर अपना राज करने लगता है लेकिन हम हमारी आस कभी नहीं छोड़ते। समय के साथ मंजिलें गुजर जाती है, हमारी आखरी मंजिल भी लगभग नजदीक आती है।

फिर एक वक्त में हमें भी थोड़ी बैठने की जगह मिलती है। और जैसे ही उस विंडो सीट से हमारी मुलाकात हो जाती है, आखरी स्टेशन आ जाता है। और लगभग जीती हुई बाजी में हम हार ढूंढने लगते है। इसमें गलती मंजिलों की नही या आपकी भी नहीं, जिंदगी में कुछ न कुछ छूटेगा, कुछ पलभर के लिए मिलेगा, लेकिन छूटे हुए पलों के गमदीदा नशे में रहोगें तो मंजिले भी धुँधली हो जाएगी।

कोई शायर गज़ब कह चुका है की “मिले तो शुकर कर ना मिले तो सबर कर और तो और इस सबर के मीठे फलों की आदत हमे तो बचपन से लगाई गयी है। बस उन फलों को चखकर देखो, मंजिलें मिठास से बढ़कर लगने लगेगी।

– शायAr

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